बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मैथिली भाषियों के लिए अलग राज्य की मांग की. बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी ने सदन में ये मांग उठाई. राबड़ी देवी ने 2018 में भी अलग मिथिलांचल की मांग उठाई थी.
उन्होंने ये मांग ऐसे वक्त उठाई है, जब केंद्र सरकार ने हाल ही में मैथिली भाषा में संविधान का अनुवाद करवाया है. माना जा रहा है कि केंद्र की काट करने के लिए राबड़ी देवी ने ये मांग उठाई है. राबड़ी देवी ने मांग की कि मैथिली भाषियों के लिए अलग ‘मिथिलांचल’ बनाया जाना चाहिए.
बिहार के 38 में से 26 जिलों में लगभग 4 करोड़ लोग हैं, जो मैथिली भाषा बोलते हैं. बिहार के अलावा झारखंड और नेपाल के भी कुछ हिस्सों में मैथिली बोली जाती है. मैथिली भाषा को 2003 में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था. आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं.
मैथिली भाषियों के अलग ‘मिथिलांचल’ की मांग सदियों से हो रही है. 25 नवंबर को ही दिल्ली के जंतर-मंतर में मिथिलांचल की मांग को लेकर बड़ा प्रदर्शन हुआ था. ये प्रदर्शन अखिल भारतीय मिथिला राज्य संघर्ष समिति की ओर से किया गया था.
कब से चल रही मिथिलांचल की मांग?
1902 में ब्रिटिश इंडिया के सरकारी अधिकारी जॉर्ज ग्रियर्सन ने भाषाओं पर आधारित एक सर्वे किया था. इस सर्वे में मिथिला के लिए अलग नक्शा बनाया गया था.
साल 1912 में जब बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग कर बिहार को बनाया गया तो उस सर्वे के आधार पर मैथिली बोलने वालों ने मिथिला राज्य की मांग उठाई. लेकिन अंग्रेजों ने इस मांग को ये कहते हुए खारिज कर दिया कि अगर ऐसा किया तो आगे चलकर बिहार और दो राज्यों- ओडिशा और मिथिला में बंट जाएगा.
1921 में दरभंगा रियासत के महाराजा रामेश्वर सिंह ने एक अलग मिथिला राज्य की मांग उठाई. 1936 में बिहार से अलग कर ओडिशा को अलग राज्य बना दिया गया. लेकिन मिथिला की मांग को नजरअंदाज कर दिया गया.
1947 में आजादी मिलने के बाद 1950 से 1956 के बीच भाषा के आधार पर कई राज्यों का गठन हुआ. लेकिन अलग मिथिला को फिर अनदेखा कर दिया गया.
साल 1952 में डॉ. लक्ष्मण झा की अगुवाई में अलग मिथिला राज्य की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन चला. मिथिला केशरी नाम से मशहूर बाबू जानकी नंदन सिंह ने 1954 में मिथिला की मांग को लेकर कांग्रेस में अपना विरोध जताया. 1956 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को मिथिला के लिए कई दस्तावेज सौंपे थे.
1986 में जनता पार्टी के सांसद विजय कुमार मिश्रा ने मिथिला राज्य की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन किया. इस आंदोलन में मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, पूर्णिया, भागलपुर समेत उत्तरी बिहार के कई जिले शामिल थे. इस दौरान तीन दिन तक रेल रोको आंदोलन भी हुआ था. फिर मार्च 1996 में मिथिला राज्य संघर्ष समिति ने भी आंदोलन किया.
बीजेपी-जेडीयू के नेता भी कर चुके हैं मांग
साल 2000 में जब बिहार से अलग कर झारखंड को बनाया गया तो मिथिला राज्य की मांग ने फिर जोर पकड़ा. अगस्त 2004 में बीजेपी नेता ताराकांत झा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मिथिला राज्य की मांग को लेकर आंदोलन करने को कहा. उन्होंने इसके लिए एक हस्ताक्षर अभियान भी शुरू किया. हालांकि, बाद में उन्हें बीजेपी से निकाल दिया गया था.
इसी तरह, 2008 में जेडीयू के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष श्रवण चौधरी ने कहा कि उनकी पार्टी उत्तरी बिहार की 18 लोकसभा और 108 विधानसभा को मिलाकर मिथिला राज्य बनाने की पक्षधर है. उनका कहना था कि ये इलाका काफी पिछड़ा है और अलग राज्य बनाकर ही इसका विकास किया जा सकता है.
क्रिकेटर से बीजेपी सांसद बने कीर्ति झा आजाद ने भी 2015 में मिथिला राज्य की मांग की. उन्होंने इस मुद्दे को संसद में भी उठाया था.
2019 में बीजेपी के तीन नेताओं- गोपाल ठाकुर (दरभंगा से सांसद), अशोक कुमार (मधुबनी से सांसद) और संजय सरावगी (दरभंगा से विधायक) ने भी मिथिला राज्य की मांग उठाई. उन्होंने चेतावनी दी कि सरकार से भीख में मांगने की बजाय हिंसा के जरिए मिथिला बनाया जाएगा.
क्या है मिथिलांचल?
मिथिलांचल में बिहार और झारखंड के बड़े हिस्से और नेपाल के कुछ जिले शामिल हैं. यहां की मूल भाषा मैथिली है और इसे बोलने वालों को मैथिल कहा जाता है. मिथिलांचल के पूर्व में महानंदा नदी, दक्षिण में गंगा, पश्चिम में गंडकी और उत्तर में हिमालय की तलहटी है.
आज के समय में देखा जाए तो मिथिलांचल में बिहार के 38 में से 20 जिले शामिल होंगे. इनमें दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, बेगुसराय, कटिहार, अररिया, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और पूर्णिया समेत कई जिले होंगे.
क्या अलग राज्य बन सकता है मिथिलांचल?
किसी भी क्षेत्र को राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है. संविधान का अनुच्छेद-3 केंद्र सरकार को राज्य के गठन का अधिकार देता है. केंद्र सरकार किसी भी राज्य का क्षेत्र घटा या बढ़ा सकती है. उसका नाम भी बदल सकती है.
जब किसी क्षेत्र को अलग राज्य बनाया जाता है तो सबसे पहले वहां की विधानसभा में इसे लेकर प्रस्ताव पास होना जरूरी है. इस प्रस्ताव को फिर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. इसके बाद केंद्र सरकार इस पर कदम उठा सकती है.
जब किसी नए राज्य का गठन किया जाता है या नाम बदला जाता है, उससे जुड़ा बिल संसद में लाया जाता है. संसद में आने के बाद राष्ट्रपति प्रभावित राज्यों के पास भेजते हैं और उनकी राय मांगते हैं. राज्यों को इस बिल पर अपनी राय देने के लिए छह हफ्ते का समय मिलता है. हालांकि, राष्ट्रपति राज्यों की राय मानने के लिए बाध्य नहीं हैं.
क्या कर सकती है केंद्र सरकार?
अनुच्छेद तीन के तहत, राज्य की सीमा और नाम बदलने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है.
केंद्र सरकार चाहे तो किसी राज्य से उसका कुछ क्षेत्र अलग कर सकती है. दो या उससे ज्यादा राज्य के क्षेत्रों को अलग कर एक नया राज्य बना सकती है. किसी राज्य से उसका क्षेत्र अलग कर किसी दूसरे राज्य में मिला सकती है. किसी राज्य की सीमा में बदलाव कर सकती है. या फिर किसी राज्य का नाम बदल सकती है.
आजादी के बाद जब 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून बना तो उससे 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेश बने थे. मौजूदा समय में भारत में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं.
आजादी से अब तक पांच राज्यों- कर्नाटक (पहले मैसूर), तमिलनाडु (पहले मद्रास), उत्तराखंड (पहले उत्तरांचल), ओडिशा (पहले उड़िसा) और पुडुचेरी (पहले पांडिचेरी) के नाम बदले जा चुके हैं. जबकि, चार केंद्र शासित प्रदेशों- हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा को राज्य बनाया गया है.
आखिरी बार जम्मू-कश्मीर को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटकर दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था.